श्रीडूंगरगढ़ पुस्तकालय - सम्पूर्ण श्रीडूंगरगढ़ वासियों का गौरव है यह सबसे पुरातन पुस्तकालय| शहर के बीचो-बीच स्थित यह पुस्तकालय हजारों पत्र - पत्रिकाओं के संग्रह का एक अनूठा उदाहरण है | साहित्य प्रेमियों, लेखकों , कवियों एवं पाठकों के लिए शहर के भामाशाहों ने मिलकर इसका भव्य निर्माण एवं नवनिर्माण करवाया |
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा पुस्तकालय - पुस्ताकालय की स्थापना लगभग सन १९४३ के आसपास हुई तथा इसके संचालन का दायित्य श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के आधीन भलीभांति चल राहा हैं | वर्तमान में इस पुस्ताकलय में ६००० सै अधिक दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह है| वर्तमान समय में ६० सै अधिक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्र -पत्रिकाएं वाचनालय में आती हैं | इस पुस्ताकालय में रम्भा माता सभागार का निर्माण एवं सौंदर्यकरण श्री धर्मचन्द्र भीखमचंद पुगलिया के आर्थिक सहयोग से हुआ |
राष्ट्रभाषा पुस्ताकालय - राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिती के द्वारा इसकी स्थापना ३१.०७.१९९५ को विधिवत रूप से कि गयी| सर्वप्रथम श्री श्याम महर्षि ने इसमें अपनी पुस्तकें प्रदान कर श्रीगणेश किया | वर्तमान में पुस्ताकलय में १२ हजार से अधिक ग्रन्थ तथा ३५० प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियां उपलब्ध हैं| वर्तमान में १५० से अधिक सदास्यों का जुड़ाव है| इसे राज्य के भाषा एवं पुस्ताकालय विभाग से मान्यता प्राप्त है | वर्तमान में अध्यक्ष श्री श्याम महर्षि तथा मंत्री श्री बजरंग शर्मा है | पुस्ताकालय में दैनिक २, साप्ताहिक ५, पाक्षिक १०, मासिक १९, द्विमासिक २, त्रैमासिक १२, वार्षिक २ तथा अनियमित कालीन ३ पत्र - पत्रिकाएं आती हैं |
मरुभूमि शोध संस्थान- इसकी स्थापना राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिती के सात्रीध्य में १७.०८.१९८९ कि गयी | शोधकक्ष निर्माण का उद्घाटन ११.०९.१९९९ को एशिया विश्वविद्यालय, टोकयो (जापान) के इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. मासानोरी सातो ने किया | शोध संस्थान द्वारा अब तक १० ग्रथों का प्रकाशन भी किया जा चुका है तथा "ख्यात" नाम से वार्षिक एवं वर्तमान में "जुनी ख्यात" अर्धोवार्षिकी पत्रिका का प्रकाशन भी किया जा रहा है | मरुभूमि शोध संस्थान के पास १८ वीं से २० वीं शताब्दी की २१६ हस्तलिखित कृतियाँ तथा गत १०० से १५० वर्ष के मध्य लिखित २७५ बाहीया एवं रुक्के व परवानों का संग्रह है | इसके अलावा प्राचीन टेराकोटा की सामग्री भी उपलब्ध है|